भारत और मॉरीशस सरकार की द्विपक्षीय संस्था     A Bilateral Organization of the Government of India and the Government of Mauritius
World Hindi Secretariat


 
विश्व हिंदी दिवस 2012
 

 

मॉरीशस से एक बार फिर हिंदी का जय नाद गूँज उठा । हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषा बनाने के लक्ष्य से विश्व हिंदी सचिवालय 4 वर्षों से लगातार प्रयासरत है । इसी को ध्यान में रखते हुए सचिवालय ने 10 जनवरी 2012 को मॉरीशस के शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्रालय एवं भारतीय उच्चायोग के संयुक्त तत्वावधान में इंदिरा गाँधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र में विश्व हिंदी दिवस का भव्य रूप से आयोजन किया । सचिवालय की महासचिव श्रीमती पूनम जुनेजा ने सभी का स्वागत करते हुए मॉरीशस में सचिवालय की स्थापना से लेकर आज तक आयोजित गतिविधियों पर नज़र दौड़ाते हुए इसकी भावी योजनाओं पर प्रकाश डाला ।

समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में मॉरीशस के शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्री, माननीय डॉ. वसंत कुमार बनवारी ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम की गरिमा बढ़ाई । साथ ही साथ मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त महामहिम श्री टी. पी. सीताराम, सचिवालय की शासी परिषद के सदस्य श्री अजामिल माताबदल और श्री सत्यदेव टेंगर सहित अनेक महानुभावों ने कार्यक्रम में भाग लिया । इस वर्ष अतिथि वक्ता के रूप में वार्सो विश्वविद्यालय से हिंदी विदूषी, प्रो. दानुता स्तासिक को आमंत्रित किया गया था ।

मॉरीशस के शिक्षा एवं मानव संसाधन मंत्री डॉ. बनवारी ने मॉरीशस में हिंदी भाषा की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कहा - "हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में मॉरीशस हमेशा आगे रहा है। इस बात को दोहराते हुए मुझे हमेशा लगता है कि भारत के बाहर हिंदी शिक्षण के लिए जितनी अच्छी व्यवस्था मॉरीशस में है वह दुनिया में बहुत कम देशों में है ।"

इसके साथ ही पाठशालाओं में इसके लिए जो कार्य हो रहे हैं और आई.सी.टी. का हिंदी के साथ जो संगम हो रहा है, उसपर डॉ. बनवारी ने बताया - "हम हिंदी और अन्य एशियाई भाषाओं के शिक्षण को आधुनिक बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । शिक्षण में आई.सी.टी. का प्रयोग आज एक विकल्प ही नहीं, बल्कि एक आवश्यकता बन गई है और इसके लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं । एक उदाहरण देना चाहूँगा । प्राथमिक स्तर पर हिंदी पढ़ाने के लिए जो अध्यापक लिए जाते हैं उन्हें प्रशिक्षण के दौरान बाकी सभी जेनेरल पर्पोस अध्यापकों के समान ही आई.सी.टी. पढ़ाई जाती है ।"

हिंदी अध्यापकों का प्रोत्साहन बढ़ाते हुए डॉ. बनवारी जी ने कहा - "शिक्षा मंत्री होने के नाते अध्यापकों से मेरी यही माँग होगी कि वो हिंदी के शिक्षण में आई.सी.टी. का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग करें ।" मॉरीशस के इतिहास के पन्नों पर नज़र दौड़ाते हुए तथा इसमें हिंदी एवं अनेक संस्थाओं के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया - "यहाँ के लोगों को पहली बार मतदान का अधिकार दिलाने से लेकर हमारे देश की स्वतंत्रता तक हिंदी भाषा का योगदान रहा है और हमारी सरकार आज भी हिंदी के लिए काम कर रही संस्थाओं को पूरा सहयोग दे रही है । इन सब के साथ ही मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की स्थापना होने से हम लोग अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उभरकर आए हैं ।" पूरे विश्व को हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपना सहयोग देने के लिए डॉ. बनवारी ने कहा - "न सिर्फ दुनिया भर में उसका सम्मान हो रहा है जो मॉरीशस ने अपने इतिहास के दौरान हिंदी के विकास के लिए किया है बल्कि दुनिया भर में हिंदी भाषियों को यह संदेश भेजा जा रहा है कि जिस तरह मॉरीशस ने हिंदी को पूरा मान-सम्मान दिया है, उसी तरह विश्व भर के हिंदी भाषी अपना योगदान दें ।"

अंत में शिक्षा मंत्री ने संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं में हिंदी को शामिल करने के बारे में कहा – "मेरे अनुसार अब वह ऐतिहासिक समय आ गया है जब भारत सरकार को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ हमें पूरी ताकत के साथ यह प्रस्ताव रखना चाहिए कि हिंदी भाषा को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया जाए "।

मॉरीशस में भारत के उच्चायुक्त महामहिम श्री टी.पी. सीताराम ने विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर भरत-मॉरीशस की साझेदारी पर अपने विचार व्यक्त किये – भारत और मॉरीशस की संस्कृति को साथ लेकर चलने की संस्कृति है जिसपर हमें गर्व है । अर्थातहमारी भाषाओं को उसी समावेश की भवना के साथ आगे बढ़ना है । पूरे विश्व में हिंदी भाषा जिस तेज़ गति से फैल चुकी है उसपर बड़े ही स्पष्ट रूप से महामहिम उच्चायुक्त ने बताया – "ये दिल और दोस्ती की ज़ुबान है । हिंदी फिल्में और हिंदी गाने दुनिया के उन हिस्सों में लोकप्रिय है जहाँ इस भाषा को कोई नहीं समझता पर आपको उसके गीतों को गुनगुनाते हुए लोग मिल जाएँगे । इसकी धुनों पर थिरकते हुए लोग मिल जाएँगे । ... ये सब कुछ हिंदी की विभिन्न संस्कृतियों की खुशबू को अपने में समेटने की ताकत और अपने खुशबू से दूसरों को मोह लेने की क्षमता का प्रमाण है ।"

विश्व हिंदी दिवस के आयोजन में सचिवालय परंपरागत रूप से हर वर्ष भारत से बाहर एक हिंदी विद्वान को आमंत्रित करता है जो विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में अतिथि वक्ता के रूप में आते हैं । इस वर्ष पोलेंड के वर्साव विश्वविद्यालय की प्रो. दानुता स्तासिक ने अपनी उपस्थिति से कार्यक्रम में चार चाँद ला दिया । उन्होंने मध्य यूरोप में हिंदी शिक्षण व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त किए तथा उन सभी विश्वविद्यालयों की चर्चा की जो हिंदी से जुड़े हैं । उन्होंने बताया – "इन देशों में हिंदी अध्यापन से जुड़े कुछ विद्वान विश्व के जाने-माने हिंदी विद्वानों में से हैं । ... ये छात्र जो पॉलिश हैं, हंगरियन हैं, बल्गरियन हैं, अपनी रुचि की प्ररणा से हिंदी और भारत के शास्त्र पढ़ते हैं ।..."

हिंदी के इतिहास पर नज़र दौड़ाते हुए तथा उसमें पोलेंड की सहभागिता पर बोलते हुए उन्होंने बताया – "पोलेंड में भारत और भारतीय संस्कृति में रुचि लेने की पुरानी परंपरा है । इसका सर्वप्रथम दस्तावेज़ सन 1596 में भारत में गोआ में लिखित एक पत्र है जिसके लेखक एक पॉलिश शिस्ताव वार्स्कि थे और जिनके वक्तव्य से पता चलता है कि मात्र सोलह शताब्दी से ही पोलेंड के लोगों को भारत को जानने की बड़ी जिज्ञासा थी और आज भी ये बात सही है ।" प्रो. दानुता स्तासिक ने पोलेंड में हिंदी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए बताया – "वर्साव में सन 1931 में भारत विद्या विभाग खोला गया । ,,, शुरू में भारत विद्या विभाग का प्रमुख क्षेत्र संस्कृत भाषा, प्राचीन भारतीय संस्कृति और दर्शन थे पर शीघ्र ही इस केंद्र में हिंदी भाषा और साहित्य का भी अध्ययन-अध्यापन प्रारंभ हो गया । ... विभाग का नाम दक्षिण एशिया विभाग में बदल दिया गया ।"

प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी सचिवालय ने अपनी वार्षिक पत्रिका विश्व हिंदी पत्रिका 2011 का लोकार्पण किया । लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि शिक्षा व मानव संसाधन मंत्री माननीय डॉ. वसंत कुमार बनवारी के हाथों किया गया ।

अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता

विश्व हिंदी दिवस 2012 के उपलक्ष्य पर सचिवालय ने अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कविता प्रतियोगिता का अयोजन किया था जिसमें न केवल भारत व मॉरीशस बल्कि ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, यू.के. से भी लोगों ने भाग लिया । समारोह के दौरान प्रतियोगिता के परिणाम की घोषणा की गई । प्रथम पुरस्कार नीतू सिंह (भारत), द्वितीय पुरस्कार श्री वशिष्ठ कुमार झमन (मॉरीशस) तथा तृतीय पुरस्कार डॉ. कौषल किशोर श्रीवास्तव (ऑस्ट्रेलिया) को प्राप्त हुआ ।

हिंदी के हज़ार वर्ष का मंचन

इस वर्ष के समारोह की अलग ही विशेषता रही । विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर मॉरीशस में प्रथम बार के लिए "हिंदी के हज़ार वर्ष'' का मंचन किया गया जिसमें हिंदी भाषा की एक हज़ार वर्ष लंबी यात्रा की संगीतात्मक व कलात्मक प्रस्तुति की गई । इस प्रस्तुति में अपभ्रंश से प्रारंभ होकर हिंदी के इतिहास के अनेक महत्वपूर्ण पड़ावों से होते हुए आधुनिक युग में अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी की स्थापना तक की कहानी सुनाई गई ।

इस अवसर पर श्री दर्शन पुरोहित ने आदिकाल के कवि चंद बरदाई कृत पृथ्वीराज रासो से उद्धृत राजा पृथ्वीराज के युद्ध पर निकलने के दृश्य का वर्णन एक नृत्य प्रस्तुति से किया । पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है अतः हिंदी साहित्य जगत की पहली उपलब्धि ।

अमीर खुसरो खड़ीबोली हिंदी के प्रथम कवि हैं । हिंदी की विकास यात्रा में उनका योगदान अतुलनीय है । हिंदी की ऐतिहासिक यात्रा की प्रस्तुति को आगे बढ़ाते हुए इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के छात्रों ने अमीर खुसरो के छाप तिलक पद को कथक नृत्य द्वारा प्रस्तुत करके सभागार को मुग्ध कर दिया ।

भक्तिकाल में जब मुग़लों के शासन और अपने ही लोगों के अत्याचार से जनता पीड़ित थी, ऐसी विषम स्थिति में जब भक्ति ही उनके दुखों को कम करने का साधन था, ऐसे में हिंदी ही प्रभु के गुणगान की भाषा बनी । इसी को दर्शाते हुए महात्मा गांधी संस्थान के छात्रों ने तुलसी और मीरा के पदों को नृत्य में पिरोकर दर्शकों को भक्तिमय आनंद प्रदान किया ।

हिंदी भाषा साधारण आदमी के भाव और मोहन राकेश की वेदना दोनों को ही अभिव्यक्त कर पाती है । हिंदी किसी भी भाव की अभिव्यक्ति की भाषा है । श्री दर्शन पुरोहित ने इसी पर आधारित मोहन राकेश के 'आषाढ़ का एक दिन' के एक अंश को अभिनीत किया ।

जब कवि निराला ने ब्रिटीश शासन की बेड़ियों से मुक्ति के लिए भारत की जय विजय का नारा लगाया, तब वह भी हिंदी भाषा के माध्यम से हुई । हिंदी स्वतंत्रता की भाषा है । इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के छात्रों ने भारती जय विजय करे पर एक नृत्य प्रस्तुत किया ।

हिंदी बेज़ुबानों, असहाय, गरीबों की भी भाषा बनी । उनके दुखों की अभिव्यक्ति प्रेमचंद ने अपनी कहानी कफ़न में की । श्री विनय दसोई की टोली के अभिनेताओं ने कफ़न कहानी के एक दृश्य का अभिनय किया ।

हिंदी की इस विकास यात्रा का चरमोत्कर्ष हिंदी सिनेमा की प्रतीकात्मक प्रस्तुति से किया गया जो वर्तमान संदर्भ में हिंदी भाषा के अंतर्राष्ट्रीय प्रचार-प्रसार में उसके योगदान को उभारता है । एम. जी. आई. और इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक केंद्र के छात्रों ने स्लमडोग मिलियोनेर फ़िल्म से जय हो गाने पर एक नृत्य प्रस्तुत किया जिसके साथ ही इस रंगीन हिंदीमय कार्यक्रम की समाप्ति हुई । मंच संचालन विश्व हिंदी सचिवालय के उप महासचिव श्री गंगाधरसिंह सुखलाल ने किया ।

- विश्व हिंदी सचिवालय की रिपोर्ट

 
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