'रामचरितमानस का युवाओं पर प्रभाव : हिंदी भाषा एवं भारतीय
संस्कृति के संदर्भ में'
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अप्रैल 2019 को विश्व हिंदी सचिवालय ने अपने सभागार, फ़ेनिक्स में विचार
मंच के चौथे संस्करण का सफल आयोजन किया। विचार मंच का विषय
'रामचरितमानस का युवाओं पर प्रभाव : हिंदी भाषा एवं भारतीय संस्कृति के
संदर्भ में' रहा।
कार्यक्रम
का शुभारंभ दीप-प्रज्वलन के साथ किया गया। इस अवसर पर भारतीय उच्चायोग
मॉरीशस का प्रतिनिधित्व करते हुए श्री अंकुश कपूर, प्रथम सचिव
(अर्थशास्त्र) ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। रामायण केंद्र की उपाध्यक्षा
डॉ. विनोद बाला अरुण अतिथि वक्ता के रूप में उपस्थित थीं।
शिक्षा व मानव संसाधन, तृतीयक शिक्षा एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्रालय
में ज़ोन 1 के प्रशासक श्री निरंजन बिगन, विश्व हिंदी सचिवालय की शासी
परिषद् के सदस्य डॉ. उदय नारायण गंगू, इंदिरा गांधी भारतीय सांस्कृतिक
केंद्र की निदेशिका आचार्य प्रतिष्ठा, रामयण केंद्र के अध्यक्ष पं.
राजेंद्र अरुण, मानव सेवा न्यास के प्रधान श्री प्रकाश बहादुर, आर्य
युवक संघ के प्रधान श्री भूषण चमन, गेहलोत राजपूत महास भा के प्रधान
श्री रोशन सिबर्ण, महात्मा गांधी संस्थान के हिंदी चेएर प्रो. वेद रमण
पाण्डेय, हिंदी प्रचारिणी सभा के प्रधान श्री धनराज शम्भु, हिंदी संगठन
की महासचिव श्रीमती अंजु घरबरन, विभिन्न समाजों एवं संस्थाओं के
प्रतिनिधि गण, माध्यमिक पाठशालाओं के शिक्षक व छात्र एवं हिंदी
प्रेमियों ने भी कार्यक्रम में भाग लिया।
कार्यक्रम
के दौरान अपने उद्बोधन में श्री अंकुश कपूर ने कहा "रामचरितमानस ने
विभिन्न क्षेत्रों जैसे राज्य-व्यवस्था, परिवार और समाज से संबंधित
मूल्यों को जनसाधारण तक पहुँचाने का मौलिक प्रयत्न किया है। इसमें
न्याय, प्रेम, सदाचार, बलिदान और संकट से निपटने के तरीकों पर विशेष
प्रकाश डाला गया है। यह ग्रंथ लम्बे समय से भारतीय संस्कृति और समाज का
अभिन्न अंग रहा है, आगे भी रहेगा, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी को प्रेरित करता
रहेगा। रामचरितमा नस हमारे युवाओं के लिए ज्ञान का स्रोत है, जो उन्हें
संबंधों को निभाने के लिए प्रेरणा देता है।"
अतिथि
वक्ता, डॉ. विनोद बाला अरुण ने 'रामचरितमानस का युवाओं पर प्रभाव :
हिंदी भाषा एवं भारतीय संस्कृति के संदर्भ में' विषय पर अपना वक्तव्य
प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि "इस विषय के चार अंग हैं -
रामचरितमानस, युवा वर्ग, हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति। मॉरीशस रामायण
का देश माना जाता है, रामायण के कारण ही हम अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म
और अस्मिता की रक्षा कर पाए हैं।" डॉ. अरुण ने चार बिन्दुओं पर प्रकाश
डाला। पहला रामचरितमानस तथा युवाओं से क्या अपेक्षाएँ हैं, दूसरा आज की
वस्तु-स्थिति क्या है?, तीसरा कल और आज में क्या अंतर आया है? और चौथा
आज अगर कोई समस्या है, तो उसका समाधान कैसे हो? उन्होंने कहा
"रामचरितमानस हमें श्रेष्ठ जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है और हमारा
मार्गदर्शन भी करता है। सत्य बोलो, कर्तव्यनिष्ठ रहो, प्रेम और त्याग
की भावना से परिपूर्ण रहो, सहनशील बनो, केवल अधिकार की नहीं
कर्तव्यपरायणता की बात करो - ये रामचरितमानस के ऐसे मूल्य हैं, जिन्हें
ग्रहण करके मनुष्य आदर्श बनता है।"
श्री
निरंजन बिगन ने अपने संदेश में कहा "जब भी हिंदी अध्ययन की बात होती
है, तो कुछ लोगों को लगता है कि हिंदी घाटे का सौदा है। कुछ लोग समझते
हैं कि हिंदी पढ़कर आजीविका के रूप में क्या प्राप्त होगा? इन भावना ओं
से हतोत्साहित होकर, वे हिंदी को बिसरा देते हैं। हिंदी का अध्ययन केवल
एक विषय के रूप में नहीं होता है। स्कूल की परीक्षाओं में उत्तीर्ण
होना एक बात है और जीवन की परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना दूसरी बात।
रामचरितमानस जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाता है। हिंदी भाषा और
विशेषकर रामचरितमानस का अध्ययन केवल साहित्यिक अध्ययन नहीं है, बल्कि
इसके अध्ययन से व्यक्ति में अनेक प्रकार के गुण स्वतः उभरने लगते हैं।
बाकी विषयों में वाणिज्यवृत्ति, भौतिक लाभ निहित है, लेकिन रामचरितमानस
में जिस उदारता की बात होती है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं है।"
श्री
भूषण चमन ने अपने संदेश में युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि श्री
राम जी ने अनेकानेक संकटों के बावजूद अपने सभी कर्तव्यों को पूरा किया।
श्री चमन जी ने रामचरितमानस के अलग-अलग काण्ड में निहित मूल्यों का
उल्लेख किया।
उन्होंने कहा कि कर्म के आधार पर ही हम अपना जीवन जीते हैं। राम जी का
जीवन अमृत रूपी जीवन है । इसमें भाई-भाई का प्यार दिखाया गया है। इनकी
चर्चा करते हुए श्री चमन जी ने इन मूल्यों को जीवन में उतारने का संदेश
दिया।
कार्यक्रम
के आरम्भ में प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने उपस्थित अतिथियों का स्वागत
करते हुए कार्यक्रम के उद्देश्य और सार्थकता की चर्चा की।
इस
अवसर पर मानव सेवा न्यास द्वारा रामचरितमानस के बालकाण्ड से उद्धृत
दोहों की प्रस्तुति, भाव, सौन्दर्य और संगीत के सुन्दर संगम का एक
ज्वलन्त उदाहरण रही। मानव सेवा न्यास के सदस्य श्री सूर्यदेव बिसेसर
तथा श्री प्रकाश बहादुर ने गायन किया और हार्मोनियम पर श्री सूर्यदेव
बिसेसर, ढोलक पर श्री राघव लाम्बा और तबले पर श्री मनीष सक्रापानी ने
साथ दिया।
देश
के युवा कलाकारों - श्री विशाल मंगरू, श्रीमती चित्रा दीरपोल एवं
गायताँ रेनाल स्टेट कॉलिज की छात्राओं - मीनाक्षी दोमा, खुशी रामेसर,
दीपशिखा दुर्गा और खितिजा बनसुगावा ने रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड की
कुछ चौपाइयों का गान किया।
वायलिन एवं स्वर-मंडल पर श्री शविन बिदेसी तथा तबले पर श्री मनीष
सक्रापानी ने साथ दिया।
कार्यक्रम के अंत में परिचर्चा-सत्र सम्पन्न हुआ, जिसके अंतर्गत
उपस्थित विद्वानों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। प्रश्नोत्तर हुए, कई
सुझाव भी दिए गए, जिससे उपस्थित युवा वर्ग अत्यन्त लाभान्वित हुआ।
डॉ. माधुरी रामधारी ने मंच-संचालन किया और प्रो. विनोद कुमार मिश्र ने
धन्यवाद-ज्ञापन किया।
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- विश्व हिंदी सचिवालय की रिपोर्ट |
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